श्री वरदत्त स्वामी
गत चौबीसी में सागर भगवान समवसरण में देशना दे रहे थे।
नरवाहन राजा समवसरण में प्रभु को पूछते है कि हे प्रभु !
मेरा मोक्ष कब होगा ? तब प्रभु कहते है कि आने वाली चौबीसी के नेमिनाथ
भगवान के प्रथम गणधर आप होंगे और फिर मोक्ष में जायेंगे।
राजा सोचता है कि आने वाली चौबीसी के वो परमात्मा मेरे उपकारी बनेंगे तो
में अब से ही उनके साथ प्रिती क्यू न करुं।
प्रभु के साथ सीधा संवाद के लिए संयम जीवन हेतु श्री सागर प्रभु के पास
नरवाहन राजा दीक्षा लेते है।
श्री नेमिनाथ प्रभु को भादरवा वद अमावस्या के दिन केवळज्ञान होता है।
गिरनार पर समवसरण में नेमिनाथ प्रभु प्रथम देशना देते है।
वरदत्त राजा प्रभु की देशना सुनकर नेमिनाथ प्रभु के पास
2000 लोगो के साथ दीक्षा ले ते है।
नेमिनाथ प्रभु वरदत्त स्वामी को मुख्य गणधर बनाते है।
प्रभु वरदत्त स्वामी को त्रिपदी देते है।
वरदत्त स्वामी अंत मुहूर्त में द्वादशांगी की रचना करते है।
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