History Of DanVeer Jagdusha In Hindi | जगडूशाह
जगडूशाह कच्छ की भद्रावती नगरी के थे। उनका वरणाग वंश के श्रीमाळी जैन थे। उनकी पत्नी का नाम यशोमती था। उनकी पुत्री का नाम प्रीतिमती था। प्रीतिमती का लग्न यशोदेव के साथ हुआ था।
जगडूशाह को एक लक्ष्मीवर्धक मणि मिला था। जिससे वो धनपति हुए थे। पीठदेवे कच्छ पर चडाई करके राजा भीमदेव ने बंधावेल किल्लो तोड दिया था। जगडूशाह ने राजा भीमदेव और अर्णोराज सोलंकी के पुत्र लवण प्रसाद के पास से सैन्य की मदद लेकर 6 महिना में भद्रावती का नया किल्ला बनाया था। पूनमिया गच्छ के आचार्य परमदेवे राजा दुर्जनशल्य के पास शंखेश्वर तीर्थ का जीणोद्धार कराया। आचार्य परमदेव भद्रावती तीर्थ पधारे। आचार्य परमदेव के उपदेश से जगडूशाह धर्मप्रेमी हुए थे।
जगडूशाहे राजा वीसलदेव की आज्ञा लेकर शत्रुंजय और गिरनार का छ'री पाळता संघ नीकाला था। आचार्य वीरसूरि ने स्थापन करेल भगवान महावीर स्वामी के जिनालय को जगडूशाह ने सोना का दंड कळश चढाया था। अष्टापदावतार जिनालय , 170 जिनालय बनाये। श्री पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ति भराई। कपिलकोट में भगवान नेमिनाथ का जिनालय बनाया। कृष्ण के मंदिर , शिवालय , विष्णु मंदिर बनाये। ढंका में श्री ऋषभदेव का नया जिनालय बनाया। वढवाण में चोवीस देरीवाला जिनालय बनाया। सेवाडी में भगवान ऋषभदेव का बावन देरीवाला जिनालय बनाया। शत्रुंजय तीर्थ , सलखणपुर , देलवाडा में नये जिनालय बनाये। भद्रेश्वर में आचार्य परमदेव के लिये उपाश्रय बंधाया। आचार्य परमदेव के शिष्य आचार्य श्रीषेण को आचार्य पद दिलाया। भद्रेश्वर में वाव बंधाई। मुसलमा के लिये मस्जिद बंधाई।
एक बार आचार्य परमदेवे जगडूशाह को कहाँ कि संवत 1313 , 1314 , 1315 में समग्र देश में दुष्काल होने वाला है। इसलिये अनाज का संग्रह कर लीजिये। जगडूशाहे जितना मिल शके उतना इकठ्ठा किया। आचार्यश्री की भविष्यवाणी सच हुई। तीन वर्ष दुष्काल पड़ा। राजा के कोठार खाली हो गये। जगडूशाह के पास अनाज के 700 कोठारे थे। राजा वीसलदेवे जगडूशाह के पास अनाज की मांगणी की। जगडूशाहे वीसलदेव को 8000 मूडा , सिंध के हमीर को 12000 मूडा , माळवा के मदनवर्मा को 18000 मूडा , दिल्ही के मोजुदीन को 21000 मूडा , काशी के राजा प्रताप को 62000 मूडा , मेवाड के राणा को 32000 मूडा, स्कंदिल को 12000 मूडा अनाज दिया। जगडूशाहे 112 दानशाला खोल दी। जगडूशाहे यब दुष्काल में 999000 मूडा ( 8060705072 मण ) अनाज का दान किया। गरीबो को करोडो सोनामहोर का दान दिया।
जगडूशाह दान देते समय बीच मे पडदा रखते थे। जिससे दान देनार का मुख न देख शके। जगडूशाह सर्वत्र दानवीर तरीके ख्याति प्राप्त की। जगडूशाह संवत 1320 से 1330 के बीच में मृत्यु हुआ। उनके मृत्यु के समाचार सुनकर दिल्ही के बादशाह ने अपना मुकुट उतारा था। सिंघपति ने दो दिन अन्न का त्याग किया था।
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