ॐ ह्रीं अर्हम् नम:
प्रथम खंड
जन्म जीवन झांकी
अनंत तीर्थंकरों
की विचरणभूमि, मुनियों एवं
योगियों की साधनाभूमि,
संत महंतो की तपोभूमि, सतियों के सतीत्व से बनी शीलभूमि, शूरवीरों की रणभूमि, अनेक महापुरुषों की गौरवभूमी ऐसी राजस्थान की धन्य-धरा को सुशोभित सुरमणीय आलोकित बनाती हुई भरतपुर' की पावनभूमि थी ।
जिसमें पारख
परिवार के सुप्रसिद्ध व्यापारी एवं ईमानदार ऋषभदत्त श्रेष्ठी रहते थे धर्मप्रेमी
पतिव्रता उनकी पत्नि थी ।
कहते है कि पारख
गोत्र के पीछे भी एक महान रहस्य छुपा हुआ है ।
प्राचीनकाल में
चन्देरी नामक एक प्रसिद्ध नगरी थी ।
वहाँ राठौड़वंशीय श्री
खरहत्थ नाम न्याय नीतिवान् राजा राज्य करते थे ।
विक्रम संवत ११७०
में जिनदत्तसूरि के जा देश से संसार की निःसारता जानकर राजा ने संयम स्वीकार किया ।
राजा खरहत्थ की
वंश परम्परा में ही पासूजी
नाम के धर्मज्ञ विद्वानं, कुशल व्यावसायी,
नीतिज्ञ पुरुष हुए पासुजी की योग्यता व गुणों से प्रभावित होकर
आहड़ नगर के राजा चन्द्रसेन ने उन्हे अपने यहाँ रत्नादि बहुमूल्य पदार्थों की खरीदी के लिए रख लिया था |
एक दिन चन्द्रसेन
के दरबार में श्रीमाल नामक एक व्यापारी आया और हीरे जवाहरात में से एक बहुमूल्य हीरा
राजा को दिखाते हुए कहा कि हे “राजन्”” यह उत्तम हीरा आपके लिए योग्य रहेगा ।
राजा चन्द्रसेन हीरे जवाहरात
के बंडे ही शौकीन थे |
उसने नगर के
निपुण परीक्षकों को
बुलवाकर उस हीरे की परीक्षा का आदेश दिया ।
जिस परीक्षक ने भी हीरा देखा
उसने अपनी मति वैभव से उसके मूल्य और गुण की परीक्षा की |
इसी बीच राजा
चन्द्रसेन ने पासूजी को भी हीरे की परीक्षा के लिए कहा ।
पासूजी ने बुद्धि
की गहराई से निरीक्षण किया और अन्त में अपना मन्तव्य प्रगट करते हुए कहा|
राजन हीरा तो
निश्चित मूल्यवान है और आकर्षक है लेकिन इसमे एक
बंहुत बड़ा दोष है | यह हीरा जिस व्यक्ति के पास रहेगा
उसकी स्त्री मर जायेगी |
आर्प चाहे तो
हीरा मालिक से इसकी जाँच कर. पासूजी के निर्णय से राजा चन्द्रसेन आश्चर्यचकित हो गया।
इस प्रकार का तो
गुण दोष किसी परीक्षक ने नहीं कहा। ऐसा स्पष्ट आधार भी नजर नहीं आता है।
अन्य परीक्षक भी
सोच विचार में डूब गये ॥
अन्तिम निर्णय तो
अब व्यापारी पर निर्भर था |
अतः राजा ने उससे पूछा “व्यापारी सत्य
हकीकत कहो, क्या? हमारे परीक्षक पासूजी ठीक
कह रहे है ।
चन्द्रसेन की
गंभीर मुद्रा के सामने असत्य कथन करना उचित नहीं था ।
अंतः उसने
कहा- राजन्! आपके रत्न परीक्षक का निर्णय सही है, इस हीरे के आने के पश्चात् मेरी पत्नी का देहान्त हो गया दूसरी शादी कीं, वह भी कुछ समय के बाद चल बसी अब मैने निश्चय
किया है, कि इस हीरे को बेचने के बाद ही तीसरी शादी करूँगा |
राजा पासूजी के
निर्णय से अत्यंत प्रभावित हुए और उसी दिन से उनका उपनाम पारखी हो गया । जो आगे चलकर पारख
रूप में प्रसिद्ध हुआ ।
कालान्तर में
पारखवंश की परम्परा में लोग बढ़ने लगे तथा
अपने व्यवसाय
संग्राम, अकाल, रोग दि कारणों से अनेक स्थान पर जाकर बसने लगे ।
इसी सन्दर्भ में
पारख परिवार के दो भाइयों के वंशज अलग - अलग होकर निम्बाहेडा, रतलाम, जावरा में बसे;
तो एक परिवार भरतपुर में जा बसा |
पुस्तक का नाम : गुरु राजेन्द्र एक दिव्य ज्योति
विषय : गुरुदेव राजेन्द्रसूरीध्वरजी म.सा संक्षिप्त जीवन परिचय एंव विरल व्यक्तित्व पुस्तक
सकलन एव प्रुफ संशोधक : मातृह्दया सा. कोलम लता श्रीजी म.सा की शिष्या परिवार
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