ॐ ह्रीं अर्हम् नम:
गुरुदेव राजेन्द्रसूरी म.सा संक्षिप्त जीवन परिचय
प्रथम खंड भाग ४
जन्म जीवन झांकी
तभी सभी की
चिन्ता व्यथा को नष्ट करने रत्नराज आगे बढ़े ।
उन्होंने पास
बहते हए स्त्रोत से पानी मंगवाया ।
रत्नराज ने हाथ
धोकर अपने आस पास जल से एक
वर्तुल बनाया और बैठ गये ।
थोड़ी ही देर बाद साधु जैसी निश्चवलता और समाधि देखकर सब
स्तब्ध हो गए थे ।
*यह बालक क्या करेगा,
यह प्रश्न सभी के
अन्तर्मन में उठ रहा था ? कौन करता है
समाधान ? बड़े भाई
माणकचन्द भी रत्नराज के ध्यान को देखकर आश्चर्य चकित थे ।*
*बेहोशी में पड़ी
रमा होश में आयी उसने तुफान मचा दिया रत्नराज का ध्यान भंग करने हेतु परन्तु सभी
निष्फल गया ।*
*ध्यान भग नहीं कर सकी,
कुछ समय बाद रत्नराज ने
आँखे खोली ।*
*जलपात्र को रत्नराज ने हाथ
में लिया उनके चेहरे पर तेज था आँखों में चमक थी ।*
*जलपात्र से हाथ
में जल लिया और मंत्र बोलते हुए रमादेवी पर छिड़क दिया ।*
*दो तीन बार ऐसा
करने पर वह पूर्ण स्वस्थ हो गयी |*
आत्मबल सम्पन्न व्यक्ति अपनी
मंत्र साधना और संकल्प के बल से दैहिक,
दैविक और भौतिक तापों का शमन कर
सकते है|.
अब रत्नराज के
आदेश से सभी यात्री आगे बढ़े । यात्रा सुखपूर्वक चल रही थी ।
दो तीन मील चले
होंगे तब सभी यात्री मिले आगे *सभी चलने लगे कि आदिवासियों ने घेर लिया भयक्रान्त
यात्री सभी बचने का मार्ग खोजने लगे ।*
*सभी कि
कर्तव्यमूढ़ हो गये तभी रत्नराज आगे बढ़ा और जोश के साथ केसरीयानाथ की जय बोली
सभी यात्रियों ने उनकां अनुकरण किया ।*
केसरीयानाथ की जय
का प्रघोष बार बार ' समवेत रूप में हो
रहा था ।
*रत्नराज हाथ में
रुमाल फहराते हए आगे बट रहे थे ।*
*सभी यात्री पीछे
पीछे आ रहे थे तभी सामने से चार घुड़सवार आते हुए दिखाई दिये ।*
जिसे देखकर
आदिवासी लुटेरों का समूह भाग गया फिर दिखाई ही नहीं दिया |
दरअसल मेवाड़ के
महाराणा ने यात्रियों की सुरक्षा के लिए सशस्त्र घुरसवारों को नियुक्ति कर रखी थी
जो मार्ग पर गश्त लगाया करते
थे ।
सभी यात्री हँसी
खुशी से आगे बढ़े |
*और निर्विघ्न
श्री केसरीयानाथजी के धाम पहुँचे।*
संभी ने आवश्यक
क्रिया से निवृत होकर परमात्म दर्शन-वंदन-पूजन-भक्ति सम्यग्रूप से की ।
*दोपहर में
सौभागमलजी ने र॒त्नराज से पूछा-क्यों भाई रत्नराज इतनी अल्प उम्र में तुमने यह चमत्कार कहां सीखा?
तुम्हारे मंत्र के प्रभाव से मेरी
लड़की स्वस्थ हो गई तुम्हारे ही साहस के बल पर सभी आदिवासी लुटेरों से मुक्ति मिली ।*
*तुम्हारे साथ की
यह तीर्थ यात्रा तो जीवन में अविस्मरणीय घटना रहेगी ।*
रत्नराज बड़ी
गंभीरता से प्रत्युत्तर देते हुए बोले सेठजी *यह कोई चमत्कार नहीं है
।*
*यह सर्वोत्कृष्ट
परम कल्याणकारी आत्मरक्षक चिन्तामणी महामंत्र नमस्कार का ही प्रभाव है ।*
यह नमस्कार
महामंत्र मेरी माता ने मुझे सिखाया था । मैं प्रतिदिन इसकी आराधना
करता हूँ |
रत्नराज की बात
सुनकर वे गद्गद् हो गये |
*घुलेवा कुछ दिन
ठहर कर दोनों भाई उदयपुर करेड़ा आदि यात्रा करते हुए पुनः भरतपुर आये ।*
श्री केसरीयाजी की यात्रा के पश्चात् दोनों भाईयों
ने व्यापार का. सारा भार बड़ी कुशलता से उठा लिया।
*ऋषभदास पूर्ण निश्चित थे ।*
वे अपना अधिकतर समय
धर्म-ध्यान में व्यतीत करते थे |
क्रमशः
*पुस्तक आधार* : गुरु राजेन्द्र एक दिव्य ज्योति
विषय : गुरुदेव राजेन्द्रसूरी म.सा संक्षिप्त जीवन परिचय एंव विरल व्यक्तित्व पुस्तक
संकलन एवं प्रुफ संशोधक : मातृह्दया सा. कोलम लता श्रीजी म.सा की शिष्या परिवार
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