ॐ ह्रीं अर्हम् नम:
प्रथम खंड
जन्म जीवन झांकी
भरतपुर उस समय अपनी आन बान - शान में अद्वितीय था |
सामाजिक भौगोलिक वातावरण, वन, उपवन, किल्ले आदि की शोभा से जो अलौकिक था |
उसी भरतपुर में बसे पारख गोत्रीय ऋषभदास अपने ५ आजा पैत्रिक व्यवसाय करते थे |
नगर में एक प्रतिष्ठित एवं गणमान्य व्यक्ति थे।
देवगुरु धर्म के प्रति समर्पित थे ।
सदाचारी तत्वज्ञानी सत्पुरुष थे |
केशरभांति परिवार में धर्म संस्कारों की सुगंध प्रसारित करने वाली केसरबाई ने अपनी कुक्षी से मणि के प्रभा को प्रकाशित करने वाला माणेकचन्द तथा प्रेम की क्यारी को विकसित करने वाली प्रैमा और गंगा को जन्म दिया ।
पूरा परिवार हरा भरा सुख समृद्धि धर्म भावना से आप्लावित था ।
देशान्तर तक श्रेष्ठी की यश पताका लहरा रही थी ।
सारा वातावरण सुखद था |
उसी आनंद सम्पन्न परिवार में विश्व को आलोकित करने वाला दिव्य पुरुष रत्न का जन्म होता है ।
एक शुभ रात्रि में केशर माँ को अर्ध जाग्रत अवस्था में सुंदर स्वप्न आता है
स्वप्न में उन्होंने देखा कि कोई दिव्य पुरुष उन्हे एक देदीप्यमान रत्न दे रहा है । रत्न हाथ में लेकर केशरबाई जैसे ही उसेवन्दन करने लगी वैसे ही उनकी निंद खुछ गई ।
यह स्वप्न शुभ संकेत का सूचक था यह जानकर वह पुनः सोयी नहीं और प्रणाम करके पतिदेव को अपने स्वप्न से सूचित किये । स्वप्न सुनकर श्रेष्ठी प्रसन्न हुआ |
प्रात मुनिराज से शुभ स्वप्न का फल जानना चाहा |
स्वप्न का गम्भीरता से चिंतन करते हुए मुनि भगवंत कुछ समय के लिए ध्यान मग्न हो गए । कुछ ही समय में अपना मौन भंग करते हुए मुनि महाराज बोला ।
“ऋषभदासजी! स्वप्न तो बड़ा शुभ है“ ।
इसके अनुसार तो आपके यहाँ दिव्य अलौकिक पुत्र रत्न का जन्म होना चाहिए|
मुनि महात्मा की वाणी को हृदयंगम करते हुए वंदन करके प्रसन्न मना घर की तरफ लौटे और अपनी पत्नी को मुनि भगवंत द्वारा कथित शुभ स्वप्न का फल कहा |
स्वप्न के अनुसार माता गर्भ की सुंदर प्रति पालना करती है । पुण्यशाली आत्मा' के प्रभाव से धर्म - ध्यान मे सदा निमग्न रहती है ।
पूर्णमास में वि.सं. १८८३ पौष शुक्ला सप्तमी, ३ दिसम्बर १८२७ गुरुवार को शुभ तम्र में केशरमाता ने पुत्र रत्न को जन्म दिया ।
ऋषभदासजी ने बड़े उत्साह के साथ पुत्र का जन्म महोत्सव मनाया तथा स्वप्न के अनुसार नवजात बालक का नाम “रत्नराज” रखा गया |
पुस्तक का नाम : गुरु राजेन्द्र एक दिव्य ज्योति
विषय : गुरुदेव राजेन्द्रसूरीध्वरजी म.सा संक्षिप्त जीवन परिचय एंव विरल व्यक्तित्व पुस्तक
सकलन एव प्रुफ संशोधक : मातृह्दया सा. कोलम लता श्रीजी म.सा की शिष्या परिवार
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