Shree Kukadeswar Paswanath Bhagvanश्री कूकडेश्वर पार्श्वनाथप्रथम नजर मे प्रतिमा के दर्शन
चंद्रमा के दर्शन से चकोरपक्षी उत्साहित बनता है , मेघ की गर्जना से मयूर के कंठ में टहुकार की पूर्ति करता है , आदित्य का उदय उत्पल के उत्कर्ष का कारण बनता है , ऐसे ही सुखद प्रतिभावों का सर्जन भक्त के हृदय में भगवान के दर्शन से उत्पन्न होते हैं । श्याम वर्ण के पाषाण के श्री कूकडेश्वर पार्श्वनाथजी के दर्शन से ऐसी ही अत्यंत आनंद की अनुभूति करता दर्शनार्थी स्वयं में भक्तिभाव प्रगट होने से संतोष का अनुभव करता है । प्रातःसवेरा होते ही कूकडा टहुका करता है और श्री कूकडेश्वर पार्श्वनाथ के दर्शन से जीवन में अध्यात्म की ज्योत प्रगट हो रही हो यह कितना रसदायी विरोधाभास है ! नौफणे की कोमलता नीरव एकान्त में भी सुविशाल सृष्टि के सामीप्य का अनुभव देती हैं ।पद्मासन में प्रतिष्ठित यह प्रतिमाजी प्रीति के पीयूष पिलाती हैं । 27 ईंच ऊंचे प्रभुजी अध्यात्म की उत्तुंग अटारी पर आत्मा का ऊर्ध्वगमन कराती हैं । 25 ईंच चौडे यह प्रतिमाजी पुनित प्रणय की प्रागटय आशंका की अंतर में सर्जन करती हैं ।
अतीत की गहराइयों में एक डूबकी
अतीत की गहराइयों मे विचरण करते हुए वसंतपुर नगर में पहुँच कर दत्त ब्राह्मण का परिचय करने से कूकडेश्वर तीर्थ की उत्पत्ति के संकेत मिलते हैं । पूर्व जन्म के उपार्जित कर्म से कणिया कुष्ट रोग बन कर दत्त ब्राह्मण को स्वयं के दुखद विपाक चखाता है ।अनित्यादि भावनाओं से भेट न हुई हो तो उसे व्याधि की वेदना व्यथित कर देती है ,यह बहुत ही स्वाभाविक है ।भावनाओं के बल के अभाव से आत्महत्या के व्यर्थ के विचारों तक यह ब्राह्मण पहुँच गया । परंतु दुखद क्षण के आने सेनपहेले ही एक चारण मुनि के मिलन का एक सुखद अकस्मात उसके जीवन में सर्जन हुआ । कर्म के जटिल सवालों का सुसंगत समाधान मिलने से एवं जैन धर्म की जानकारी से उसमें श्रावक बनने के भाव प्रगट हुए । दत्त ब्राह्मण अब श्रद्धावंत श्रावक बन गया ।
नगर के बहार पधारे हुए गुणसागर केवळी के चरणारविंद में मस्तक झुका कर दत्त श्रावक ने स्वयं का भविष्य पूछा - हस्तकंकण की तरह सभी जीवों के पर्याय को स्पष्ट देखते हुए केवली भगवंत ने उसे भविष्य के जन्मों का बोध दिया ।
`` हे दत्त ! निकाचित कर्म के बंध होने से किये हुए कर्मों का फल आयुष्य बंध के अंजाम तुझे भुगतने ही पड़ेंगे । तिर्यंचयोनि की गती में तुम्हें जाना ही होगा । सम्यक्त्व को जानकर मृत्यु को प्राप्त हो कर तुम राजपुर नगरी में रोहित के घर में कूकडे की योनि में जन्म होगा ।युवान वय में प्रवेश करते ही एक जैन मुनि के दर्शन से स्मृतिपटल पर अत्यंत उथल पाथल का सर्जन होगा । व्यथित होने से जातिस्मरण ज्ञान का उत्पन्न होगा ,और पारमार्थिक उत्थान का ऐसा अद्दभुत कारण अनायास मिलने से फिर तिर्यंच भी प्रमादवश कहाँ से बने ? अणसण के अमृत उदभव से अंतकाल में आत्म भाव में एकलक्षी बनकर तुम ईश्वर नाम का राजा बनेगा । राजा को राजाधिराज श्री पार्श्वप्रभु के पावन परिचय की पल में जातिस्मरण ज्ञान होगा और आत्मा की फळद्रुप भूमि पर बोधि-बीज का निर्माण होगा ।
अनंत ज्ञान की करुणा से स्वयं के भव्य भावि की गहराई में स्वयं के शाश्वत सुख के शिल्पी के तौर पर भावि तीर्थंकर श्री पार्श्वप्रभु को जानकर दत्त श्रावक के हृदय मंदिर में भक्ति के भाव जागे ।
केवली कथति वृत्तांत जानकर उसकी भव यात्रा ईश्वर राजा के अवतार तक पहुँची । कुसुम उद्यान में कायोत्सर्गस्थित में पार्श्वप्रभु के दर्शन से जातिस्मरण ज्ञानानुसारी बोधि बीज के प्रकट की अद्भुत घटना उसके जीवन में बनी । कुर्कट और ईश्वर के स्वयं के आख़िरी दो भव की स्मृति में कुर्कुटेश्वर पार्श्वनाथजी का मनोहर जिन बिंब भरवा कर ईश्वर राजा उसकी अर्चना करने लगे ,तभी से कुर्कुटेश्वर पार्श्वनाथ का नूतन तीर्थ निर्माण पाया ।
वह मूल तीर्थ तो काल के प्रवाह में कहाँ खो गया परंतु तब भी श्री कुर्कुटेश्वर पार्श्वनाथ का एक प्राचीनतम और प्रभावक तीर्थ आज भी विद्यमान हैं । मध्य प्रदेश में नीमच के निकट आया हुआ तीर्थ लगभग 1040 वर्ष प्राचीन माना जाता है । वर्तमान में बिराजमान प्रतिमाजी पर सं. 1676 का लेख है ।वर्तमान में तीर्थ का जीर्णोद्धार हुआ है ।
श्री कुर्कुटेश्वर पार्श्वनाथ लोकभाषा में कूकडेश्वर नाम से ज़्यादा प्रसिद्ध हैं ।
परमात्मा के धाम पर कैसे पहुँचें
नीमच रेलवे स्टेशन से 45 कि. मी. दूर आया हुआ श्री कूकडेश्वर तीर्थ मंदसौर से 60 कि.मी .और रतलाम से 117 कि.मि. दूर है । 9000 लोगों के इस गाँव में जैन समाज के 40 घर है ।
तीर्थ के विकास होने पर
धर्मशाला ,भोजनशाला आदि की सुविधा निकट भविष्य से यह तीर्थ समृद्ध होगा ।
प्रति वर्ष भादरवा सुद 10 के दिन यहाँ पर मेला लगता है ।
पता :
श्री कूकडेश्वर पार्श्वनाथ श्वेतांबर जैन मंदिर - कुकडेश्वर – ता. मनसा
पीन - 458116 जिला नीमच, मध्यप्रदेश
फ़ोन नम्बर-07421-231251 ; 231353
0 Comments