Shree AadraKumar
श्री आद्र कुमार
समुद्र के मध्य में आद्रक नाम का देश है। वहाँ आद्रक नाम का नगर है। वहाँ आद्रक राजा और आद्रका राणी थे। उनको आद्र नाम का पुत्र था। पुत्र यौवन हुआ सांसारिक भोग भोगने लगे।
अभय कुमार ने आद्र कुमार को एक जिन प्रतिमा भेट दी। वो प्रतिमा देखते ही आद्र कुमार को जाती स्मरण ज्ञान हुआ। पूर्व तीसरे भव में मगधदेश की वसंतपुर नगर में सामायिक नाम का में एक कुटुंबी ( कणबी ) था। मुजको बंधुमती नाम की पत्नी थी। हम दोनों ने सुस्थित आचार्य के पास जिन धर्म सुना। हमने प्रतिबोध पाकर दीक्षा ली। मेंने गुरु के साथ विहार किया। बंधुमती ने साध्वीजी के साथ विहार किया। एक दिन उनको देखते ही पूर्व की विषयक्रीडा याद आई। इसलिये में उस पे अनुरक्त हुआ। यह बात उनको पता चलते ही अनसन किया और देवलोक में गई। मैंने भी अनसन किया और देवलोक में गया। देवलोक का आयुष्य पूर्ण करके यहाँ अनार्य देश में जन्म हुआ।
आद्र कुमार आर्य देश में आये। और उन्होंने जाते ज दीक्षा ली। तब एक देव ने आकर कहाँ की तुमको अभी भोग्यकर्म भोगने है। वो भोगने के बाद दीक्षा ले। आद्र कुमार ने वो बात नही मानी और दीक्षा ली। आद्र कुमार मुनि विहार करके वसंतपुर नगर आये। वो नगर के देवालय में आद्र कुमार मुनि समाधिस्थ थे। वो नगर में देवदत्त नाम का शेठ रहता था। बंधुमती का जीव देवलोक में आयुष्य पूर्ण करके शेठ के घर पुत्री के रूप में अवतर्या। उनका नाम श्रीमती पड़ा। एक दिन श्रीमती नगर की दूसरी बाला के साथ देवालय गई। वहाँ श्रीमती ने खंभे के बदले आद्र कुमार मुनि को कार्योत्सर्ग खड़े थे तब खंभा मानके पति तरीके पसंद किया। व्रत की विराधना न हो इसलिये आद्र कुमार मुनि ने वहाँ से विहार किया। बारह वर्ष से श्रीमती उनकी झंखना करती है।
पूर्वभव में पति पत्नी थे वो स्नेह का तंतु मजबूत था। देवता की वाणी थी कि भोगफल भोगने है। आद्र कुमार ने श्रीमती के साथ विवाह किया। संसार का भोगो भोगने लगे। उनको एक पुत्र हुआ। बारह वर्ष पसार हुए। परंतु आत्मा तो पूर्व का अभ्यास से वैरागी था।
आद्र कुमार ने सोचा कि पूर्व भव तो मन से ही व्रत भंग किया था। तो अनार्य देश में जन्म मिला। यह भव में तो प्रत्यक्ष व्रत भंग किया है। अब तो चारित्र तप रूपी अग्नि से ही शुद्ध होगा। आद्र कुमार ने श्रीमती को समजाया और फिर से साधु वेष धारण किया। दीक्षा ली। आद्र कुमार मुनि ने चोर और तापसो अनेक लोगो को प्रतिबोध किया।
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