शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभुनी दिव्य प्रतिमानो ईतिहास
शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवाननो दिव्य प्रभाव छे. एमनी कृपा जे पामे छे ते धन्य बनी जाय छे.
जैनोना अत्यंत प्रिय प्रभुजीनुं नाम छे 'श्री पार्श्वनाथ' आ एक एवा प्रभुजी छे जे गत चोवीशीना समयथी पूजाय छे.गत उत्सर्पिणी काळमां पण चोवीस तीर्थकर भगवान थया, तेमना नवमां तीर्थकर भगवान एटले श्री दामोदर स्वामी. देवो अने मनुष्यो अने पशुओ सौ एमने नमे.मधुर अने महिमावंती एमनी वाणी. ज्यां पधारे त्यां सौनुं कल्याण करे. एमनुं मुख निहाळे तेनुं दु:ख टळे, सुख अने शांति पामे.एकदा, श्री दामोदर स्वामी पासे एक श्रावक आव्यो, आषाढी एनुं नाम.
ए समये आषाढी खूब धनाढय हतो अने खूब धार्मिक पण हतो. ते श्री देव, गुरु धर्मनी उपासना करतो, मानवतानां कार्यो करतो, जीवन उत्तम बने तेवुं जीवतो हतो. एने हंमेशां चिंता थती के 'मारो आत्मा मोक्षमां क्यारे जशे ?' आ चिंतमां ते बेचेन रहेतो हतो.
आषाढी श्रावके जाण्युं के श्री दामोदरस्वामी भगवान पोताना नगरमां पधार्या छे त्यारे ते राजी थयो. एणे प्रभुजी पासे जई वंदना कर्या अने पूछयुं के,'प्रभु ! मारो आत्मा मोक्षमां क्यारे जशे ?' श्री दामोदर स्वामी बोल्या,' हे भाग्यशाळी, आवती चोवीसीमां श्री ऋषभदेवथी मांडीने श्री महावीरस्वामी सुधीना तीर्थकर भगवान थशे, तेमांना २३मां तीर्थकर श्री पार्श्वनाथ भगवान थशे, तेमना मते 'आर्यघोष'नामे गणधर बनीने मोक्षमां जशो !
आषाढी श्रावके आ जाण्युं ने तेनी प्रसन्नतानो पार न रह्यो.
तेणे पोतानी भव्य हवेलीमां श्री पार्श्वनाथ प्रभुजीनी प्रतिमा बनावीने पधरावी. ते दिन-रात तेनुं पूजन, अर्चन, आराधन करवा मांडयो. हवे तेनुं कार्य मात्र भगवान पार्श्वनाथनी आराधना अने उपासना करवानुं ज हतुं. कहे छे के आषाढी श्रावक मरीने देवलोकमां गयो. त्यां तेने आगला भवनी स्मृति थई एटले ते श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी पोते बनावेली प्रतिमा देवलोकमां लई गयो ने तेनी भक्तिभावथी पूजा करवा लाग्यो. महाभारत काळना समयनी वात छे.
श्री कृष्णनुं प्रतापी शासन हतुं. आ चोवीशीना २२मां तीर्थकर श्री अरिष्टनेमि युवावस्थामां हता. श्री कृष्णने थयुं के हवे जरासंघ साथे युद्ध करवुं पडशे. तेमणे बलराम, अरिष्टनेमिने साथे राखीने युद्ध छेडयुं.
जरासंघ ते समयनो बळियो अने क्रूर राजा हतो. ते पण विश्वविजेता हतो.
द्वारिकानगरीना इशान खूणामां युद्ध मंडायुं. वाढियार प्रदेशनी सरस्वती नदीनो विशाळ किनारो युद्धक्षेत्र बनी गयो. आ एक निर्णायक युद्ध हतुं. घोर संग्राम हतो. जरासंघ पाछो पडे तेम नहोतो. एणे विद्याप्रयोग कर्यो. श्रीकृष्णना सैन्य पर 'जरा' नामनी विद्या वहेती मूकी. आखुं सैन्य बेहोश थई गयुं.
श्रीकृष्ण चिंतामां डूब्या. ए समये श्री अरिष्टनेमिए श्रीकृष्णे कह्युं के,' हे बांधव ! आप चिंता न करो. जरासंघे विद्याप्रयोग कर्यो छे. तेणे 'जरा'नामनी विधार्थी आपणुं सैन्य बेहोश कर्युं छे. आ एक कातिल विधा छे. पण तेनो पण एक उपाय छे. आप श्री पद्मावतीदेवीनी उपासना करो. अठ्ठम तपनी साधना करीने श्री पद्मावती देवीनी आराधना करशो एटले जरूर प्रसन्न थशे. ए समये तमे तेमनी पासे रहेली श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी श्रीआषाडी श्रावके भरावेरली प्रतिमा मांगजो. तेओ ते तमने आपशे. आ प्रतिमानी पूजा आजकाल श्री पद्मवतीदेवी करे छे अने आ प्रतिमा खूब प्रभावशाळी छे. आ प्रतिमाने प्रक्षाल करशो ने ते जळ सैन्य पर छांटशो एटले जरा विद्या भागी जशे अने सैन्य स्फूर्ति साथे बेठुं थशे.'
'पण त्यां सुधी युद्धक्षेत्रनुं संचालन कोण करशे ?'
ए हुं करीश.' अरिष्टनेमिए कह्युं, एक पण जीवनी हिंसा कर्या विना हुं बधुं संभाळी लईश. तमे गुप्तस्थानमां साधनामां बेसी जाओ.' एम ज थयुं. श्रीकृष्ण गुप्तस्थानमां साधनामां बेसी गया. श्री अरिष्टनेमिकुमारे पूरा कौशल्य साथे युद्धक्षेत्रनो मोरचो संभाळ्यो अने जरासंगने सहेज पण मचक न आपी. जरासंघ पण आ युवक पर खुश थई गयो. त्रण दिवस पसार थई गया.
श्रीकृष्णनी साधना फळीभूत थई. श्री पद्मावतीदेवी प्रसन्न थयां अने श्रीकृष्णनी इच्छा मुजब श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमा अर्पित करी.
प्रात:काळ थयो. श्रीकृष्णे श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिमाने अभिषेक करीने ए प्रक्षालजळ सैन्य पर छांटयुं. आखुं सैन्य आळस मरडीने बेठुं थई गयुं. फरी भीषण युद्ध मंडायुं. जरासंघ हणायो. श्रीकृष्णनो विज्य थयो.
विज्यनी ए क्षणे श्रीकृष्णे शंखनाद कर्यो त्यां पछी एक गाम वस्युं. तेनुं नाम शंखेश्वर. श्रीकृष्णे त्यां एक भव्य जिनमंदिरनुं निर्माण कर्युं, अने तेमां श्री पद्मावतीदेवीए आपेली चमत्कारिक जिनप्रतिमा स्थापी, अने जिनप्रतिमा ते आजना शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान.
जैन इतिहास प्रमाणे आ ज स्थळे ८७ हजार वर्षथी आ जिनप्रतिमा अहीं पूजाय छे. शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवाननो महिमा अपूर्व छे. प्रतिवर्ष अहीं हजारो साधु-साध्वीओ, यात्रिको, भाविको आवे छे अने प्रभुने पूजे छे. प्रतिवर्ष अहीं हजारो भक्तो अठ्ठम तप करे छे, अने पोताना मनोवांछित पामे छे. श्री पद्मावतीदेवी पण अहीं विराजे छे ने भक्तोनी भीड भांगे छे.
श्री मणिभद्रवीर पण अहीं विराजे छे ने सौनी सहाय करे छे. जैन इतिहास कहे छे के श्री वर्धमानसूरि महाराजनो आत्मा अहीं अधिष्ठायक देव तरीके हाजराहजूर छे अने तीर्थनो अद्भुत महिमा प्रसारे छे. जगतभरमां भाग्ये ज एवुं कोई जिनमंदिर हशे ज्यां श्री पार्श्वनाथ प्रभुनी नानी या मोटी एकाद जिनप्रतिमा न होय !
शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवाननो दिव्य प्रभाव छे. एमनी कृपा जे पामे छे ते धन्य बनी जाय छे. जेनी श्रद्धा दृढ होय छे तेनुं कल्याण अचूक थाय छे. श्रद्धानी ज्योत झळहळे त्यांथी दु:ख नासी जाय. शंखेश्वर एवुं अद्भुत आस्थाधाम छे. ज्यां श्रद्धानी अखंड ज्योत झळांहळां थाय छे !
आचार्य श्री वात्सल्यदीपसूरिजी महाराज
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