लेश्या का स्वरूप :-
लेश्या शब्द का अर्थ (Leshya Meaning) :-
लेश्या (Leshya) शब्द का अर्थ है लिम्पन करना यानि लिप्त करना। अर्थात् जीव का जो परिणाम
आत्मा को कर्म से लिप्त कराये अर्थात् आत्मा और कर्म परमाणुओं को जोड़ने का काम
करे , उस परिणाम को लेश्या कहते हैं।
जिस प्रकार रंग या मिट्टी से हम दीवार या जमीन को लीपते हैं , ठीक उसी प्रकार
कषाय या शुभ और अशुभ भाव रूपी लेप के द्वारा आत्मा का परिणाम लिप्त होता है उसे
लेश्या कहते हैं। अर्थात् लेश्या का संबंध जीव के परिणामों से है।
आगम में लेश्या के छह भेद हैं :-
कृष्ण , नील , कापोत , पीत , पद्म , शुक्ल।
कृष्ण लेश्या (Krusna Leshya) :-
कृष्ण यानि काला अर्थात् सबसे निकृष्ट परिणाम। जैसे क्रोध , मान , माया , लोभ
चारों कषायों की अति तीव्रता , दया धर्म से रहित , स्वच्छंदी , विवेक रहित ,
पंचेन्द्रिय के विषयों में तीव्र आसक्ति , दुराग्रह , तीव्र बैर , हिंसा ,
असंतोष आदि कृष्ण लेश्या वाले जीव के लक्षण हैं।
नील लेश्या (Nil Leshya) :-
जितना अंतर काले रंग से नीले रंग में यानि कृष्ण लेश्या वाले जीव की
तुलना में नील लेश्या वाले जीव के परिणाम कुछ अच्छे। फिर भी बहुत
निद्रालु होना , धन-धान्यादि के संग्रह में तीव्र लालसा होना , विषयों में
आसक्त , मानी , मतिहीन , विवेक रहित , आलसी , कायर , दूसरों को ठगने में तत्पर
, आहारादि संज्ञाओं में आसक्त आदि ये नील लेश्या वाले जीव के लक्षण हैं।
कापोत लेश्या (Kapot Leshya) :-
कापोत यानि कबूतर जैसा। यानि परिणामों की जाति में और थोड़ा अंतर। यानि कषायों
की उतनी तीव्रता नहीं रहती। जो दूसरों के ऊपर रोष करता हो , निंदा करता हो ,
दोष बहुल हो , शोक बहुल हो , भय बहुल हो , ईर्ष्यावान हो , सदैव अपनी प्रशंसा
का इच्छुक हो , कर्तव्य- अकर्तव्य का कोई विवेक न हो , ये कापोत लेश्या वाले
जीव के लक्षण हैं।
पीत लेश्या (Pit Leshya) :-
यानि कषाय में मंदता। जो जीव अपने कर्तव्य और अकर्तव्य , सेव्य- असेव्य को
जानता हो. सबमें समदर्शी हो , दया और दान में रत हो , मृदु स्वभावी और ज्ञानी
हो आदि -- ये सब पीत लेश्या वाले जीव के लक्षण हैं।
पद्म लेश्या (Padma Leshya) :-
यानि कषाय में और अधिक मंदता। जो त्यागी हो , भद्र हो , सच्चा हो , उत्तम काम
करने वाला हो , बहुत बड़ा अपराध या नुकसान होने पर भी क्षमा कर दे , सच्चे
देव-शास्त्र-गुरू का उपासक हो ये पद्म लेश्या वाले जीव के लक्षण हैं।
शुक्ल लेश्या (Shukla Leshya) :-
जो पक्षपात न करे , निदान के भाव न हो , सभी के साथ समान व्यवहार करे , जिसे
पर में राग-द्वेष, वा स्नेह ना हो आदि शुक्ल लेश्या वाले जीव के लक्षण
हैं।
एक उदाहरण द्वारा छहों लेश्याओं का स्पष्टीकरण --
जैसे छह पथिक वन में जा रहे हैं , और
मार्ग भूल गये। भूख से बेहाल हैं , तभी फलों से लदा हुआ एक वृक्ष दिखाई दिया।
सभी फल खाना चाहते हैं , पर सभी के परिणाम अलग-अलग। उस समय छहों व्यक्तियों के
विचार छहों लेश्याओं पर घटित हो रहे हैं -- पहला बोला -- *वृक्ष को जड़ से काट
दो* (कृष्ण लेश्या) , दूसरा बोला -- *स्कन्ध या तने को काटो*( नील लेश्या) ,
तीसरा बोला -- *शाखाओं को काटो* (कापोत लेश्या) , चौथा बोला -- *उपशाखाओं को
काटो* (पीत लेश्या) , पाँचवा बोला -- *फलों को तोड़कर खाओ* (पद्म लेश्या) ,
छटवाँ बेला -- *हवा चलने से जो फल जमीन में स्वयं गिर गयें हैं उनको खाओ*(शुक्ल
लेश्या)।
रंगों के आधार पर लेश्याओं का लक्षण
कृष्ण लेश्या -- भौंरे के समान वर्ण वाली ,
नील लेश्या -- नील की गोली या नीलकन्ठ या मयूरकन्ठ के समान वर्ण वाली
,
कापोत लेश्या -- कबूतर के समान वर्ण वाली ,
पीत लेश्या -- तप्त स्वर्ण के समान वर्ण वाली ,
पद्म लेश्या -- पद्म अर्थात् कमल के समान वर्ण वाली ,
शुक्ल लेश्या -- कांस के फूल के समान श्वेत वर्ण वाली।
कहने का अभिप्राय यही है कि जीव को हमेशा अपने
परिणामों की संभाल रखनी चाहिये। अप्रशस्त लेश्याओं के परिणामों से प्रतिसमय
बचें , और क्रमशः पीत,पद्म,शुक्ल लेश्या का पुरूषार्थ करते हुये अलेश्या होने
की भावना भायें।
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