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ArjunMali Story In Hindi | Jainism Story | Jain Stuti Stavan

ArjunMali - Story Of Jainism 

अर्जुनमाली




राजगृही नगरी में अर्जुन नाम का एक माली रहेता था। उनको बंधुमती नाम की सुंदर पत्नी थी। गाँव के बाहर उनकी फूल की वाड़ी थी। वो वाड़ी के पास एक मुद्गलपाणी नाम के यक्ष का मंदिर था। वो पति - पत्नी हरदिन यक्ष की पूजा करते थे और पुष्पा चढ़ाते थे।
वो गाँव में ललिता नाम की एक टोली थी। एक बार यह टोली के 6 लोगो ने बंधुमती पे नजर बिगाड़ी। अर्जुनमाली और उनकी पत्नी बंधुमती यक्ष की पूजा करने मंदिर में आये। मंदिर के द्वार के पीछे छुपे हुए छ लोगो ने अर्जुनमाली को बांध दिया और बंधुमती पे अत्याचार करने लगे। यह देखकर अर्जुनमाली को क्रोध आया और अपनी आप को धिक्कार ने लगे। अर्जुनमाली यक्ष को कहने लगे कि तुम्हारे स्थान में यह अनर्थ हो रहा है। इतने दिन तुम्हारी पूजा करने का यह फल मिला ! मूर्ति के अधिष्ठायक ज्ञान से यह अनर्थ देखा। और क्रोधित होकर अर्जुनमाली के शरीर में प्रवेश किया। यक्ष के बल से बंधन तोड़ के मूर्ति के हाथ में रही हुई मुद्गर लेकर 6 पुरुष और बंधुमती को मार दिया।
अर्जुनमाली प्रत्येक दिन 7 लोगो को मारता था। राजगृही नगरी में हाहाकार मच गया। राजा और प्रजा ने बहुत उपाय कीये फिर भी सफलता नही मिली। श्रेणिक महाराजा ने उदघोषणा कराई की अर्जुनमाली 7 लोगो की हत्या न कर दे तब तक नगरवासियों को बाहर निकलना नही।
6 माह तक ऐसा ही चला। प्रत्येक दिन 7 लोगो की हत्या करता था। एकबार महावीर प्रभु नगर के बहार पधारे थे। सुदर्शन शेठ प्रभु को वंदन करने नगर के बहार निकला। वहाँ अर्जुनमाली मुद्गर लेकर सुदर्शन शेठ को मारने आये। सुदर्शन शेठ ने भाव से प्रभु को वंदन करके सभी वोसरा के काउसग्ग ध्यान में नवकार मंत्र का स्मरण करने लगे। नवकार मंत्र के प्रभाव से अर्जुनमाली के शरीर में से यक्ष भाग गया और सुदर्शन शेठ गिर पड़े। बाद में सुदर्शन शेठ को पूछा कि आप कौन हो ? सुदर्शन शेठ ने काउसग्ग पार के कहा की में भगवान महावीर देव का श्रावक हु। प्रभु यहाँ पधारे है। आप भी साथ आये आपको लाभ होगा।
अर्जुनमाली और सुदर्शन शेठ प्रभु के समवसरण में आये। प्रभु की देशना सुनकर सुदर्शन शेठ ने व्रत पच्चखाण लिये। अर्जुनमाली ने पापो की निंदा पूर्वक दीक्षा ली। वो ही समय उन्होंने प्रभु के सामने जीवनभर छठ्ठ के पारणे छठ्ठ करने की प्रतिज्ञा की।
दीक्षा के बाद अर्जुनमाली पारणा के दिन वहोरने जाते थे तब सभी लोग उन का तिरस्कार करने लगे। लोग उन का अपमान हो वैसे शब्दों बोलते थे। अर्जुन मुनि समता रखते थे। किसी के लिये मन में अप्रीति नही होने देता। जो भी उपसर्ग हो वो शांति से सह लेता था। ऐसे उत्तम कोटि का तप करके और भावना भाते मुनि को 6 माह के बाद केवलज्ञान हुआ। 15 दिन का अनशन करके मोक्ष में गये। ArjunMali Story In Hindi 

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