Palitana Maha Tirth Bhavyatra | श्री शत्रुंजय महातीर्थ की भावयात्रा
है ये पावन भूमि .. यहाँ बार बार आना ..
आदिनाथ के चरणों में .. आकर के झुक जाना ..
विश्व विख्यात जैन तीर्थ शत्रुंजय (पालीताना ) को शाश्वत तीर्थ, तिर्थाधिराज भी कहा जाता है। इस तीर्थ की महिमा क्या कहें, स्वयं प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव प्रभु ने 99 बार इस भूमि को पावन किया है। यहाँ का कण कण पवित्र है। अनंत अनंत मुनि भगवंत इस भूमि से (जय तलहटी से ) मोक्ष पधार चुके है।
गुजरात के भावनगर के पास, पालीताना.. शत्रुंजय नदी के तट पर शत्रुंजय पर्वत की तलहटी में स्थित जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ है।
जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध पालीताना में पर्वत शिखर पर एक से बढ़कर एक भव्य व सुंदर 863 जैन मंदिर हैं। सफ़ेद संगमरमर में बने इन मंदिरों की नक़्क़ाशी व मूर्तिकला विश्वभर में प्रसिद्ध है। 11वीं शताब्दी में बने इन मंदिरों में संगमरमर के शिखर सूर्य की रोशनी में चमकते हुये एक अद्भुत छठा प्रकट करते हैं तथा मणिक मोती से लगते हैं।
पालीताना शत्रुंजय तीर्थ का जैन धर्म में बहुत महत्त्व है। पाँच प्रमुख तीर्थों में से एक शत्रुंजय तीर्थ की यात्रा करना प्रत्येक जैन अपना कर्त्तव्य मानता है।
मंदिर के ऊपर शिखर पर सूर्यास्त के बाद केवल देव साम्राज्य ही रहता है। सूर्यास्त के उपरांत किसी भी इंसान को ऊपर रहने की अनुमति नहीं है।
पालीताना के मन्दिरों का सौन्दर्य व नक़्क़ाशी का काम बहुत ही उत्तम कोटि का है। इनकी कारीगरी सजीव लगती है।
पालीताना का प्रमुख व सबसे ख़ूबसूरत मंदिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का है। आदिशवर देव के इस मंदिर में भगवान की आंगी दर्शनीय है। दैनिक पूजा के दौरान भगवान का श्रृंगार देखने योग्य होता है।
1618 ई. में बना चौमुखा मंदिर क्षेत्र का सबसे बड़ा मंदिर है। कुमारपाल, मिलशाह, समप्रति राज मंदिर यहाँ के प्रमुख मंदिर हैं। पालीताना में बहुमूल्य प्रतिमाओं आदि का भी अच्छा संग्रह है।
श्री शत्रुंजय महातीर्थ की भावयात्रा
श्री शत्रुंजय महातीर्थ के जितने गुणगान किये जाएँ वे कम है । चॊदह राजलोक मे ऎसा एक भी तीर्थ नहि है जिसकी तुलना शत्रुंजय तीर्थ से कर सके । वर्तमान मे भरतक्षेत्र मे तिर्थंकर नहीं है, केवलज्ञानी नहीं है, विशिष्ट ज्ञानी भी नहीं है, फिर भी महाविदेह क्षेत्र की पुण्यशाली आत्मा भरत क्षेत्र के मानवी कॊ परम सोभाग्यशाली मानते है, उसका एक मात्र कारण इस शाक्ष्वत तीर्थ का भरत क्षेत्र मे होना है । हम कितने भाग्यशाली है हे की हमे यह शाश्वत तीर्थ मिला है ॥ हमे इस तीर्थ की बार~बार यात्रा करनी चाहिए ।
नव्वाणुं प्रकार कि पूजा की ढाल मे बताया हे की....
जिम जिम ए गीरि भेटिये रे,
तिम तिम पाप पलाय सलुणा""
ऎसे गिरिराज की हम सांसारिक मजबूरी से बार~बार यात्रा नहीं कर सकते है । ज्ञानी पुरुषों ने घर बेठे तीर्थयात्रा का फल लेने का सुगम शार्ट कट मार्ग बताया है यानी जो व्यक्ति प्रातःकाल प्रतिदिन इस तीर्थ की भाव यात्रा करता है उसे तीर्थ यात्रा का फल मिलता है, साथ ही २ उपवास का फल मिलता है
१-) जहाँ परमात्मा की प्रतिमा या पगलिये होवें
वहाँ ""नमो~जिणाणं"" बोलिये
२-) जहाँ मोक्षगामी महापुरुषों के पगलिये हो वहा
""नमो~सिध्दाणं"" बोलिये
३-) जहाँ देवी~देवताओं की प्रतिमा हो वहाँ
""प्रणाम"" करे
मेरे ह्रदय का हर अणु,उपकार का सुमिरन करे।
मेरे ह्रदय की धड़ कनें, प्रभु नाम का ही रटन करे।।
हे पास मेरे क्या प्रभु, जो आपको अर्पण करू।
ऐसे प्रभु श्री आदि जिन को, भाव से वंद अब आप सब ग्रुप मेम्बरस घर पर बेठे~बेठे अनुभव करे की आप पलीताणा शहर की धर्मशाला मॆ ठहरे हॆ आप सभी पालीताणा गये होगें तॊ बस उस पल का इमेजिन करे तलेटी रोड पर आनेवाले जिनालयों कॊ "" नमॊ~जिणाणं"" करें
अब आप धर्मशाला से पूजा की जोड व अष्टप्रकारी पूजा की सामग्री ले कर खुले पेर यात्रा शुरु करे अब गिरिराज के पास पोहुचतें दाए हाथ की तरफ आगंम मन्दिर है यहाँ पर नमो~जिणाणं करे अब आगे गिरिराज के पास पोहचते ही ""अधिष्टायक देव"" ""कवड यक्ष"" की देहरी को प्रणाम करे
गिरिराज की यात्रा प्रारम्भ हो रही है
सिध्दाचल समरुं सदा, सोरठा देश मोझार
मनुष्य जन्म पामी करी, वंदु वार हजार..
एकेकु डगलुं भरे, शेत्रुजा समिति जेह
ऋषभ कहे भव क्रोडना, कर्म खपावे तेह..
शत्रुंजय समो तीरथ नहीं, ऋषभ समो नहीं देव.
गोतम सरीखा गुरु नहि वळी वळी वंदु तेह
आयो हु आयो आदिनाथ, ओ सिदाचल वाले ,
तुम हो सिदाचल वाले ,तुम हो विमलाचल वाले।
सोवन अरु मोवन तारी, मुरतनी महिमा भारी,
दिल में बिराजो मेरे नाथ ,हो सिदाचल वाले।।
इस तीर्थ के कंकर ....पत्थर हम बन जाये
भक्ति पथ पर चलकर .... दर्शन तेरा पाए
अन्तिम इच्छा पूरी होवे ...जीवन हो सुख कारा...
सर्व प्रथम "" जय तलेटी"" मॆ सिध्दशिला व श्री आदिनाथ दादा आदी कॆ ११ देहरियों को नमो~जिणाणं करे
अब बाये हाथ की तरफ "" श्री धर्मनाथजी"" के जिनालय मे नमो~जिणाणं करें दाहिनी तरफ प्राचीन जैन सरस्वती देवी जी कॊ नमन करे
अब आगे बाबूजी के मन्दिर जी मे प्रवेश करे बाई तरफ ऊपर ""श्री गोतम स्वामी"" जी को वन्दन व जल
मन्दिर जी मे ""श्री महावीर स्वामी जी"" कॊ ""नमो~जिणाणं"" करे मुलनायक ""आदिनाथ दादा"" कॊ नमो~जिणाणं करे
अब बहार निकलने पर दाहिनी तरफ समवसरण मन्दिर जी को नमो~जिणाणं करे ॥
अब ऊपर की तरफ यात्रा शुरु करते है ॥
यहाँ से थोडा आगे चलने पर दाए हाथ की तरफ भरत महाराजा जी के पगलिये है अब यहा पर नमो~सिध्दाणं करे अब आगे दाई तरफ ""श्री नेमीनाथजी"" की देहरी है यहाँ पर नमो~जिणाणं करे
अब अब हम भाव यात्रा मे हम पोहच गयॆ है हिगंलाज"के हाडे पर यहाँ ""हिगंलाज माता"" कॊ
प्रणाम करे
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इसका हिंगुल नाम इसलिए पड़ा क्यू की हिंगुल नामक राक्षस गिरिराज पर चढ़ने वाले यात्रियों पर
उपद्रव करता था । इस कारण से किसी तपस्वी संत पुरुष ने स्व तप और ध्यान के प्रभाव से अम्बिका देवी को प्रत्यक्ष करके कहा यह हिंगुल राक्षस जो यात्रियों को परेशान करता है उसे तुम दूर कर यात्रीगण की सुखपूर्वक गिरीराज कि यात्रा कर सके । इस प्र अम्बिका देवी ने उस राक्षस के साथ युद्ध करके उसे परास्त किया ।
लगभग मृत्यु की अवस्था में पहुंच दिया तब राक्षस ने देवी की शरण स्वीकार कर निवेदन किया की हे माँ आज से आप मेरे नाम से जानी जाओ और इस तीर्थ क्षेत्र में मेरे नाम की स्थापना करो । ऐसा कुछ करो की मैं कदापि किसीको भी पीड़ा नहीं पहुंचाउंगा । देवी ने देवी उसकी प्रार्थना का मान रखा और तत्पश्चात वह राक्षस अदृश्य हो गया और मृत्यु की गोद में समां गया ।
तभी से अम्बिका देवी यहाँ श्री सिद्धाचाल की टेकरी पर अधिष्ठात्री देवी होकर रही और हिंगलाज माता के रूप में पूजी जाने लगी । इसलिए इस टेकरी का स्थान " हिंगलाज माता का हेडा " के नाम से प्रसिद्ध हुआ । श्री शत्रुंजय महातीर्थ के जितने गुणगान किये जाएँ वे कम है ।
इसका हिंगुल नाम इसलिए पड़ा क्यू की हिंगुल नामक राक्षस गिरिराज पर चढ़ने वाले यात्रियों पर
उपद्रव करता था । इस कारण से किसी तपस्वी संत पुरुष ने स्व तप और ध्यान के प्रभाव से अम्बिका देवी को प्रत्यक्ष करके कहा यह हिंगुल राक्षस जो यात्रियों को परेशान करता है उसे तुम दूर कर यात्रीगण की सुखपूर्वक गिरीराज कि यात्रा कर सके । इस प्र अम्बिका देवी ने उस राक्षस के साथ युद्ध करके उसे परास्त किया ।
लगभग मृत्यु की अवस्था में पहुंच दिया तब राक्षस ने देवी की शरण स्वीकार कर निवेदन किया की हे माँ आज से आप मेरे नाम से जानी जाओ और इस तीर्थ क्षेत्र में मेरे नाम की स्थापना करो । ऐसा कुछ करो की मैं कदापि किसीको भी पीड़ा नहीं पहुंचाउंगा । देवी ने देवी उसकी प्रार्थना का मान रखा और तत्पश्चात वह राक्षस अदृश्य हो गया और मृत्यु की गोद में समां गया ।
तभी से अम्बिका देवी यहाँ श्री सिद्धाचाल की टेकरी पर अधिष्ठात्री देवी होकर रही और हिंगलाज माता के रूप में पूजी जाने लगी । इसलिए इस टेकरी का स्थान " हिंगलाज माता का हेडा " के नाम से प्रसिद्ध हुआ । श्री शत्रुंजय महातीर्थ के जितने गुणगान किये जाएँ वे कम है ।
अब भाव यात्रा मे आगे की ओर प्रस्थान करते है गाते हुऎ झूमते हुऎ....
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सिध्दाचल शिखरों दिवो रे
आदेश्वर अलबेलो रे...
बोलो बोलो बोलो बोलोरे
आदेश्वर अलबेलो रे....
अब आगे श्री कलिकुण्ड पाश्र्वनाथ जी की देहरी पर नमो~जिणाणं करे अब नये रास्ते से उपर जाने पर बाई तरफ चार शाश्वत जिन की देहरियो पर ""नमो~जिणाणं"" करे
फिर आगे दाई तरफ श्री पूज्य जी की टुंक के अन्दर चोबीसो भगवान की केवलज्ञान की मुद्रा मे व्रक्ष सहित चोबीस दहरी पर नमो~जिणाणं करे
अब आगे भव्य देहरी मे पद्मावती माता जी व मणिभद्र जी को प्रणाम करे
आगे सीधे चलने पर दाएं हाथ की तरफ द्रविड वारी खिल्लजी की देहरी पर नमो~सिध्दाणं करे
थोडा आगे जाने पर राम~भरतादि की देहरी पर ""नमी सिध्दाणं करे
अब आगे बाएँ हाथ पर नमि~विनामी"" की देहरी पर नमो~सिध्दाणं करे
अब आगे हनुमान धारा मे नमो~सिध्दाणं करे
अब भाव यात्रा मे हम नवटुंक के रास्ते के यहा पर आ गये है
अब हम यहाँ से सीधे ना चलकर नवटुंक की ओर प्रस्थान करेंगे
पहली टुंक चोमुखजी - श्री आदिनाथ जी को नमो~जिणाणं
दुसरी टुंक छीपावसही - श्री आदिनाथ जी को नमो~जिणाणं
तीसरी टुंक साकरवसी - श्री चिंतामणि पार्श्र्वनाथजी कॊ नमो~जिणाण
चोथी टुंक नंदिक्ष्वर द्विप- श्री बावन जिनालय को नमो~जिणाण
पांचवी टुंक हेमा बाई - श्री अजितनाथ जी को नमो~जिणाणं
छट्ठी टुंक प्रेमा~भाईमोदी - श्री आदिनाथ जी को नमो~जिणाण
सातवीं टुंक बाला~भाई - श्री आदिनाथ जी को नमो~जिणाणं
आठवीं टुंक मोती शाह शेठ - श्री आदिनाथ जी को नमो~जिणाण
जयकारा दादा आदेश्वर जी का
जय आदिनाथ जी
जय गिरिराज जी
नवमीं टुंक
मे जाते हुए वाघन पोल मे प्रवेश करते है ॥
श्री शांतिनाथ जी जिनालय नमो~जिणाणं
स्तुति
सुधासोदरवाग्ज्योत्स्त्रा, निर्मलीक्रतदिड् मुखः
म्रगलक्ष्माः तमः शान्त्यै, शान्तिनाथजिनोस्तु वह
अब यहा से आगे चलकर बाएँ हाथ निचे उतरने पर संघ रक्षिका चक्रेक्ष्वरी माता जी"" को प्रणाम अब आगे ""वाघेक्ष्वरी देवी पद्मावती माता जी व निर्वाण देवी को प्रणाम"
अब उपर चलने पर ""कवडयक्ष"" की देहरी को प्रणाम
अब उपर चलने पर दोनो तरफ सैंकडों मन्दिर है सभी मन्दिरों को नमो~जिणाणं
अब हाथी पोल सॆ उपर चढते ही दादा ""श्री आदिनाथ जी"" के दर्शन करते ही मन रोमांचित हॊ जाता है
अब दादा के दरबार की प्रदक्षिणा मे आने वाले सहस्त्रकुट, समसवरण, सम्मेदशिखर, अष्टापद, एवं सभी
परमात्माओं को ""नमो~जिणाणं""
ओर ""रायण पगला "" पर नमो~जिणाण
अब पुंडरिक स्वामी जी ""नमो~सिध्दाणं"" अब चोमुख प्रतिमाओं व श्री आदिनाथ दादा व
सभी प्रतिमाओं को नमो~जिणाणं
अब मुख्य टुंक मे दादा के दरबार मे पूजा के वस्त्रों मे दादा की अष्टप्रकारी पूजा जल, चंदन, पुष्प, धुप, दीपक, अक्षत, नैवेध, फल, करने बाद निचे कि ओर प्रस्थान
अब सामने पुंडरिक स्वामी जी ""को नमो~सिध्दाणं""अब दोनों तरफ आने वाले समस्त भगवान जी को नमो~जिणाणं जयकारा दादा आदेश्वर जी का
जय आदिनाथ जी
जय गिरिराज जी
ऒर समस्त देवी-देवताओं को प्रणाम
अब राम पोल आने पर हसतें हुएं सिध्दाचल शिखरें दिवो रे
आदेश्वर अलबेलो रे गाते हुएं
निचे ""जय तलेटी"" पर आकर गिरिराज कॊ भाव पूर्वक नमन करते है ओर नमो~जिणाण
श्रैणिक राजा जी ने अपनी संपत्ति का बखान किया की 1 हाथी 1 हजार योजन तक चलने मे जितने कदमरखता है उन प्रत्येक कदम पर मे 1 हजार स्वर्ण मुद्रा रख सकता हु इतनी मेरी संपत्ति है ॥
यह बात सुनकर हम चकित रह जाते है ॥
प्रथम ""तिर्थंकर भगवान श्री ऋषभ देव जी कहते है की शत्रुंजय महातीर्थ के संमुख चलने मे एक, एक कदम चलने पर एक करोड़ पापकर्मो का क्षय होता है इतनी कर्म निर्जरा होती है ॥
१४ क्षेत्र मे इस भव्य तीर्थधिराज के एसें अनुपम प्रभाव सुनकर भव्य जीवों मे भक्ति उमड जाती है
अब हाथी पोल सॆ उपर चढते ही दादा ""श्री आदिनाथ जी"" के दर्शन करते ही मन रोमांचित हॊ जाता है
सिद्धाचल शिखरे दिवो रे आदेश्वर अलबेलो रे
जय जय श्री आदिनाथ जी
नमो~जिणाण दादा
स्तुती
आदिमं प्रथिवीनाथ मादिमं निष्परिग्रहः
आदिमं तीर्थनाथं च ऋषभस्वामिनं स्तुमः
परमात्माओं को ""नमो~जिणाणं""
ओर ""रायण पगला "" पर नमो~जिणाण
अब पुंडरिक स्वामी जी ""नमो~सिध्दाणं"" अब चोमुख प्रतिमाओं व श्री आदिनाथ दादा व
सभी प्रतिमाओं को नमो~जिणाणं
अब मुख्य टुंक मे दादा के दरबार मे पूजा के वस्त्रों मे दादा की अष्टप्रकारी पूजा जल, चंदन, पुष्प, धुप, दीपक, अक्षत, नैवेध, फल, करने बाद निचे कि ओर प्रस्थान
अब सामने पुंडरिक स्वामी जी ""को नमो~सिध्दाणं""अब दोनों तरफ आने वाले समस्त भगवान जी को नमो~जिणाणं जयकारा दादा आदेश्वर जी का
जय आदिनाथ जी
जय गिरिराज जी
ऒर समस्त देवी-देवताओं को प्रणाम
अब राम पोल आने पर हसतें हुएं सिध्दाचल शिखरें दिवो रे
आदेश्वर अलबेलो रे गाते हुएं
निचे ""जय तलेटी"" पर आकर गिरिराज कॊ भाव पूर्वक नमन करते है ओर नमो~जिणाण
श्रैणिक राजा जी ने अपनी संपत्ति का बखान किया की 1 हाथी 1 हजार योजन तक चलने मे जितने कदमरखता है उन प्रत्येक कदम पर मे 1 हजार स्वर्ण मुद्रा रख सकता हु इतनी मेरी संपत्ति है ॥
यह बात सुनकर हम चकित रह जाते है ॥
प्रथम ""तिर्थंकर भगवान श्री ऋषभ देव जी कहते है की शत्रुंजय महातीर्थ के संमुख चलने मे एक, एक कदम चलने पर एक करोड़ पापकर्मो का क्षय होता है इतनी कर्म निर्जरा होती है ॥
१४ क्षेत्र मे इस भव्य तीर्थधिराज के एसें अनुपम प्रभाव सुनकर भव्य जीवों मे भक्ति उमड जाती है
मुझ बालक से भाव यात्रा कराने मे कोई गलत हुई होतो क्षमा करें
मिचछामिं~दुक्कडम
नियमित रुप से श्री शत्रुंजय गिरराज की भाव~यात्रा करके भरपुर पुण्य उपार्जन कर के परम पद की प्राप्ति करे जय आदिनाथजी जय गिरिराज जी..
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