*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
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*राजवंश*
आचार्य हेमचंद्र के जीवन में सिद्धराज जयसिंह और भूपाल कुमारपाल का योग वरदान सिद्ध हुआ। गुजरात रत्न सिद्धराज जयसिंह से आचार्य हेमचंद्र का प्रथम मिलन अणहिल्लपुर पाटण में हुआ। गुरु देवचंद्रसूरि के स्वर्गवास के बाद हेमचंद्राचार्य खम्भात से पाटण आए। उस समय पाटण पर चौलुक्य वंशीय नरेश सिद्धराज जयसिंह का शासन था।
एक बार अणहिल्लपुर पाटण के राजमार्ग पर भीड़ के साथ गजारूढ़ नरेश को सामने आते हुए देखकर आचार्य हेमचंद्र एक तरफ किसी दुकान पर खड़े हो गए। संयोग से नरेश का हाथी भी उनके पास आकर रुक गया। उस समय हेमचंद्र ने एक श्लोक बोला
*कारय प्रसरं सिद्ध! हंसतिराजमशङ्कितम्।*
*त्रस्यन्तु दिग्गजाः किं तैर्भूस्त्वयैवोद्धृता यतः।।*
राजन! गजराज को निःसंकोच आगे बढ़ाओ। रुको मत। हाथियों के त्रास की आप चिंता नहीं करें। इस धरती का उद्धार आप से हुआ है।
पाटणनाथ हेमचंद्र की बुद्धि से प्रभावित हुआ। उस दिन के बाद नरेश के निवेदन पर आचार्य हेमचंद्र का पदार्पण पुनः-पुनः राजदरबार में होने लगा।
हेमचंद्राचार्य ने 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' नामक व्याकरण ग्रंथ रचा। इसके साथ इतिहास का मनोरम अध्याय निबद्ध है।
गुजरात रत्न सिद्धराज जयसिंह मालव से विजय-माला पहन कर लौटे। लक्ष्मी उनके चरणों में लोट रही थी। सब ओर से बधाइयां प्राप्त हो रही थीं। स्वागत गीत गाए जा रहे थे, परंतु सरस्वती के स्वागत के बिना उनका मन खिन्न था। मालव राज्य का मूल्यवान् साहित्य उनके कर-कमलों की शोभा बढ़ा रहा था, पर उनके पास व्याकरण और जीवन को मधुर रस से ओतप्रोत करने वाली काव्यों की अपनी अनुपम संपदा नहीं थी। मालव ग्रंथालय के एक विशाल ग्रंथ को देखकर सिद्धराज जयसिंह ने पूछा "यह क्या है?" ग्रंथालय में नियुक्त पुरुषों ने कहा "राजन! यह भोज नरेश का स्वरचित सरस्वती कण्ठाभरण नामक विशाल व्याकरण है। विद्वद् शिरोमणि नरेश भोज शब्दशास्त्र, अलङ्कारशास्त्र, निमित्तशास्त्र, चिकित्साशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, वास्तुविज्ञान, अङ्कशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, सामुद्रिकशास्त्र आदि अनेक ग्रंथों के रचनाकार थे। प्रश्न चूड़ामणि, मेघमाला, अर्थशास्त्र आदि ग्रंथ भी उनके थे।"
सिद्धराज जयसिंह विद्या प्रेमी था। उसने इस कमी की पूर्ति के लिए प्रतिभाओं का आह्वान किया। तत्रस्थ विद्वानों की दृष्टि मेधावी आचार्य हेमचंद्र पर केंद्रित हुई। नरेश ने हेमचंद्र को कहा "मुनि नायक! लोकोपकार के लिए नए व्याकरण का निर्माण करो। इसमें आपकी ख्याति है और मेरा यश है।"
*आचार्य हेमचंद्र नरेश का परामर्श पाते ही किस तरह स्वयं को इस कार्य के लिए नियोजित किया...?* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
संकलन - श्री पंकजजी लोढ़ा
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