Acharya Shree Durbalika PuspaMitra
आचार्य श्री दुर्बलिका पुष्पमित्र
आचार्य श्री दुर्बलिका पुष्पमित्र वे मंदसोर के वतनी थे।
आचार्य श्री दुर्बलिका पुष्पमित्र का जन्म वीर संवत 550 में दशपुर मंदसोर में हुआ था।
उनके माता - पिता बौद्ध धर्मी थे। उन्होंने आचार्य रक्षितसूरिजी के उपदेश से प्रतिबोध पाकर जैन दीक्षा ली थी।
उनको 9 पूर्वश्रुत का ज्ञान प्राप्त हुआ था।
वो ज्ञान के पठन - पाठन में ऐसे उधमी रहते थे ,
उनको शरीर का भान नही रहेता था। उनका शरीर दुबला ही दिखता था।
एकबार उनके परिवार के लोगो ने दूसरे मुनियों को पूछा,
मुनिजी के ऐसे दुबले - पतले क्यों दिख रहे है ?
आप उनको अच्छा सात्विक आहार लेने की मनाई करते हो या बहुत तपस्या कराते हो ऐसा लग रहा है।
गुरु ने कहा कि उनको पौष्टिक अच्छा आहार ही देते है।
घी भी देते है। परंतु रात दिन सतत अभ्यास के कारण वो सब वापर जाता है।
परिवार के लोग ऐसी बात से माननेवाले नही थे।
परिवार के लोग दुर्बलिका पुष्पमित्र को अपने घर ले जाते है।
बहुत आहार कराते है।
उन्होंने देखा कि सतत पढ़ने के परिश्रम से वो सब पच जाता है।
तब में आखिर पढ़ना बंध कराके आहार कराया।
तब उनका शरीर ठीक दिखने लगा।
आचार्यश्री ने उनकी योग्यता देखके उनको सूरि पद पे स्थापित किया।
गुरु ने आचार्य श्री दुर्बलिका पुष्पमित्र को अपनी पाट पे स्थापित किया।
आचार्य श्री दुर्बलिका पुष्पमित्र पूर्वधर और वो समय के युगप्रधान थे।
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