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Kalikal Sarvagna HemChandracharya M.S. Bhag 2 | Jain Stuti Stavan


*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*


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*जन्म एवं परिवार*

आचार्य हेमचंद्र वणिक् पुत्र थे। उनका जन्म गुजरात प्रदेशांतर्गत धंधुका नगर में वीर निर्वाण 1615 (विक्रम संवत 1145, ईस्वी सन् 1088) में कार्तिक पूर्णिमा रात्रि के समय मोढ़ वंश में हुआ। उनके पिता का नाम चच्च अथवा चाचिग एवं माता का नाम पाहिनी था। उनका अपना नाम चांगदेव था। प्रबंधकोश के अनुसार उनके मामा का नाम नेमिनाग था। 

*जीवन-वृत*

आचार्य हेमचंद्र के समय में गुजरात प्रदेशांतर्गत अणहिल्लपुर पाटण नगर में सिद्धराज जयसिंह का राज्य था। नरेश के कुशल नेतृत्व में राज्य भौतिक संपदा की दृष्टि से उत्कर्ष पर था। प्रजा सुखी थी। अणहिल्लपुर के अंतर्गत धंधुका एक समृद्ध नगर था। नगर में अनेक वणिक् परिवार रहते थे। उनमें मोढ़ परिवार विख्यात था। हेमचंद्रसूरि के पिता चाचिग श्रेष्ठी मोढ़ वंश के अग्रणी थे। वे धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे। विद्वज्जनों का सम्मान करते थे। उनके पूर्वज मोढेरा ग्रामवासी होने के कारण वे मोढ़ वंशी कहलाते थे। हेमचंद्र की माता पाहिनी साक्षात् लक्ष्मी रूपा एवं शील गुण संपन्ना थी। उसकी जैन धर्म में दृढ़ आस्था थी। हेमचंद्र जब गर्भ में आए उस समय पाहिनी ने स्वप्न में अपने को चिंतामणिरत्न गुरु के चरणों में भक्ति-भाव से समर्पित करते देखा। प्रबंधकोश के अनुसार उसने स्वप्न में आम्रफल देखा था। उस समय धंधुकापुर में चान्द्रगच्छ से संबंधित प्रद्युम्नसूरि के शिष्य देवचंद्रसूरि विराजमान थे। पाहिनी ने स्वप्न की बात उनके सामने रखी। स्वप्न का फलादेश बताते हुए गुरु ने कहा "पाहिनी! तुम्हारी कुक्षी से पुत्र-रत्न का जन्म होगा। वह जैन शासन में कौस्तुभमणि के तुल्य प्रभावी होगा।" 

गुरु के वचनों को सुनकर पाहिनी प्रसन्न हुई। विशेष धर्माराधना के साथ वह समय बिताने लगी। कालावधि समाप्त होने पर उसने ईस्वी सन् 1088 में कार्तिक पूर्णिमा की मध्य रात्रि में तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। आकाश पूर्णिमा के चांद से जगमग आ रहा था। धरा भी मानवचंद्र को पाकर मुस्कुराई। पाहिनी नंदन-आगमन से हर्षित हुई। श्रेष्ठी चाचिग का हृदय प्रसन्नता से भर गया। परिवार का हर सदस्य खुशी से नाच उठा। जन्म के बारहवें दिन उल्लासपूर्ण वातावरण में पुत्र का नाम चांगदेव रखा गया। अभिभावकों के समुचित संरक्षण में बालक दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगा। 

*पाहिनी जब बालक चांगदेव को धर्म स्थान पर ले कर गई... तब बाल-सुलभ चपलता को देखकर उसके गुरु देवचंद्रसूरि ने क्या कहा...?* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः... 

संकलन - श्री पंकजजी लोढ़ा

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