*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
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*श्रीहेमचन्द्रसूरिणामपूर्व ं वचनामृतम्।*
*जीवातुर्विश्वजीवानां राजवित्तावनिस्थितम्।।*
*गुरु-परंपरा*
प्रभावक चरित ग्रंथ के अनुसार आचार्य हेमचंद्र के गुरु चंद्रगच्छ के देवचंद्रसूरि थे। देवचंद्रसूरि के गुरु प्रद्युम्नसूरि थे।
प्रबंधकोश के अनुसार हेमचंद्रसूरि की गुरु परंपरा पूर्णतल्लगच्छ से संबंधित थी। पूर्णतल्लगच्छ में श्रीदत्तसूरि हुए। श्रीदत्तसूरि के शिष्य यशोभद्र, यशोभद्र के पट्टशिष्य प्रद्युम्नसूरि, उनके पट्टशिष्य गुणसेनसूरि थे। श्री गुणसेनसूरि के पट्टशिष्य देवचंद्रसूरि तथा उनके शिष्य हेमचंद्राचार्य थे।
'कुमारपाल प्रतिबोध' नामक काव्य में श्री हेमचंद्राचार्य ने अपना संबंध पूर्णतल्लगच्छ से बताया है।
चंद्रगच्छ यथार्थ में गच्छ नहीं चंद्रकुल था। यह चंद्रकुल कोटिक गण से संबंधित था। कोटिक गण से अनेक शाखाओं, प्रशाखाओं एवं अवांतर गच्छों का विकास हुआ। उनमें एक पूर्णतल्लगच्छ था। जिसका चंद्रगच्छ से उद्भव हुआ। पूर्णतल्लगच्छ और चंद्रगच्छ दोनों का निकट का संबंध था।
त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित प्रशस्ति महाकाव्य में हेमचंद्रसूरि की गुरु परंपरा का संबंध कोटिक गण वज्रशाखा के अंतर्गत माना गया है। पूर्व गुरुजनों के नामों का क्रम प्रायः सभी ग्रंथों में समान है।
श्रीदत्तसूरि कई राजाओं के प्रतिबोधक थे। यशोभद्रसूरि राजपुत्र एवं महान् तपस्वी संत थे। प्रद्युम्नसूरि समर्थ व्याख्याता थे। गुणसेनसूरि सिद्धांतों के विशेषज्ञ थे एवं शिष्यहिता टीका रचना में वादिवेताल शांतिसूरि के प्रेरणा स्रोत थे। उनके उत्तराधिकारी देवचंद्रसूरि प्रद्युम्नसूरि के शिष्य थे एवं हेमचंद्रसूरि के गुरु थे। दिगंबर विद्वान् कुमुदचंद्र के साथ शास्त्रार्थ करने वाले वादिदेवसूरि हेमचंद्रसूरि के गुरु देवचंद्रसूरि से भिन्न थे।
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र के जन्म एवं परिवार तथा जीवन-वृत* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
संकलन - श्री पंकज लोढ़ा
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