श्रंखला क्रमांक -4
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
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*जन्म एवं परिवार*
गतांक से आगे...
प्रबंध चिंतामणि के अनुसार जब बालक चांगदेव आठ वर्ष का था, तब अपने समवयस्क बालकों के साथ क्रीड़ा करता हुआ देव मंदिर में पहुंच गया। संयोग से वहां देवचंद्रसूरि पधारे हुए थे। अपनी मस्ती में क्रीड़ा करता हुआ बालक देवचंद्रसूरि के पट्ट पर बैठ गया। बालक के शरीर पर शुभ लक्षणों को देखकर देवचंद्रसूरि ने सोचा 'अयं यदि क्षत्रियकुले जातस्तदा सार्वभौमचक्रवर्ती, यदि वणिग्-विप्रकुले जातस्तदा महामात्यः चेद्दर्शनं प्रतिपद्यते तदा युगप्रधान इव कलिकालेऽपि कृतयुगावतारमपि।' यह बालक क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुआ है तो अवश्य ही चक्रवर्ती पद ग्रहण करेगा और वणिक् पुत्र अथवा विप्र पुत्र है तो महामात्य पद को सुशोभित करेगा। धर्मसंघ में प्रविष्ट होकर यह बालक युगप्रवर्तक होगा। कलिकाल में यह कृतयुग का अवतार होगा।
बालक को प्राप्त करने के लिए उन्होंने तत्रस्थ नागरिकों एवं व्यापारिक बंधुओं से संपर्क किया। उनको साथ लेकर वे चाचिग के घर गए। चाचिग संयोग से वहां नहीं था। वह दूसरे गांव गया हुआ था। पाहिनी गुणवती एवं व्यवहार कुशल महिला थी। अपने प्रांगण में समागत अभ्यागतों का उसने समुचित स्वागत किया। देवचंद्रसूरि का धार्मिक विधिपूर्वक अभिनंदन किया। समागत बंधुओं ने देवचंद्रसूरि के आगमन का उद्देश्य पाहिनी को बतलाया और धर्म संघ के लिए पुत्र अर्पण करने की बात कही। पुत्र के लिए गुरु का ससंघ पदार्पण आपके घर हुआ है। योग्य पुत्र की वह माता है, उसे इसका हर्ष था, परंतु वह पति के विरोध की आशंका से चिंतित थी। समागत बंधुजनों के सम्मुख हर्ष मिश्रित आंसुओं का विमोचन करती हुई पाहिनी बोली "गुरुवर्य! एतस्य पिता नितान्तमिथ्यादृष्टिः (इस बालक के पिता नितांत मिथ्यादृष्टि हैं।) वे घर पर नहीं है। मैं धर्म संकट में हूं। उनकी सहमति के बिना यह कार्य कैसे संभव हो सकता है?"
पाहिनी को समझाते हुए श्रेष्ठिजन बोले "बहिन! तुम अपनी ओर से इसे गुरु को प्रदान कर दो। माता का संतान पर पूरा अधिकार होता है।"
गणमान्य श्रेष्ठिजनों के कथन पर पाहिनी ने अपना पुत्र देवचंद्रसूरि को अर्पित कर दिया। देवचंद्रसूरि ने बालक की इच्छा जानने चाही और उससे पूछा "वत्स! तू मेरा शिष्य बनेगा?" बालक ने स्वीकृति सूचक सिर हिलाकर 'आम' कहकर अपनी भावना प्रकट की और वह शिष्य बनने के लिए सहर्ष तैयार हो गया।
*चाचिग जब घर लौटा तब पुत्र चांगदेव को वहां न पाकर उसकी क्या प्रतिक्रिया हुई...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
संकलन - श्री पंकजी लोढ़ा
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