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Javadsha - History Of Sheth Javadsha Part 2 - जावडशा - Jain Stuti Stavan

History Of Sheth Javadsha Part 2

Javadsha - History Of Sheth Javadsha Part 2 - जावडशा - Jain Stuti Stavan


जावड शाहे परदेश मलेच्छो के बीच उनका प्रभाव हुआ। जैन परिवार उनके आसपास बसाये। और वहा श्री महावीर स्वामी का जिनालय बनाया। एक दिन वहा मुनिवरों धर्म देशना देते थे तब उन्होंने एक बात सुनी , " शत्रुंजयगिरि का तेरहवाँ उद्धार जावड शाह के हाथों होगा। " शत्रुंजय महात्मय का यह वचन सुनते ही जावड शाहे प्रश्न किया कि " 


भंते ! वो जावड शाह में ही हु? " ज्ञानी मुनिवरे कहा कि वो जावड शाह तू ही है। जावड शाह के हर्ष की सीमा न रही। उन्होंने चकेश्वरी देवी की कृपा से तक्षशिला नगरी में से प्रचंड पुरुषार्थ के बाद श्री आदिनाथ भगवान कि प्रतिमा प्रत्यक्ष हुई। यह वो ही प्रतिमा थी जिनका निर्माण आदिनाथ भगवान के पुत्र बाहुबलि राजा ए कराया था। ऐसी दिव्य प्रतिमा को लेकर अनेक संकटो में से निकलकर जावड शाह महुवा नगरी आ गये। महुवा आते ही जावड शाह को शुभ समाचार मिला 12 वर्ष पूर्वे समुद्र में गये हुए वहाण सुवर्ण द्वीप से सुवर्ण भर के परत आ गये है। और वो ही क्षण दूसरा शुभ समाचार मिला कि नगर के बहार आचार्य श्री वज्र स्वामी पधारे है। जावड शाह अबजो को वहाणो को देखने के बदले आचार्य श्री वज्र स्वामी के दर्शन करने गये। 

धर्म देशना सुनी और शत्रुंजय के उद्धार में निश्रा देने के लिये युगप्रधान आचार्य से विनंती की। वज्र स्वामी महान प्रभावक और मंत्र शास्त्र मर्मज्ञ महर्षि थे। उनकी सहाय से जावड शाहे अनेक दैवी - असुरी उपद्रव को दूर किया। आदिनाथ प्रभु की दिव्य प्रतिमा दादा के शिखर तक रथ के साथ पहोचाडी। पण विघ्न संतोषी दुष्ट देव रथ के साथ वो प्रतिमा को तलेटी ला देते थे। ऐसा 21 बार हुआ। थोड़ेक वर्षो से कपर्दी यक्ष मिथ्यात्वी हो गया था। वो बहुत हैरान करता था। 

आचार्य श्री वज्र स्वामी वहा आकर जूना यक्ष को हराया। और नये कपर्दी यक्ष की स्थापना की। जावड शाहे 22वी बार प्रभु की प्रतिमा के रथ को शिखर पर चढ़ाया। वो और उनकी पत्नि रथ की आगे सो गये। जावड शाह के तेज से असुरी शक्ति पलायन हो गई। जयजयकार हुआ। आचार्य श्री वज्र स्वामी की अध्यक्षता में लाखों भाविको की हाजरी में जावड शाहे वो प्राचीन आदिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा संवत 108 में आचार्य वज्र स्वामी के हाथों कराई। जिन मंदिर पे धजा चढ़ाने जावड शाह और उनकी पत्नि सुशीला देवी शिखर पर जाते है। और वहा भावो से धजा चढ़ाते है। 

अति आनंद में जावड शाह और उनकी पत्नि सुशीला देवी के प्राण चले जाते है। वो चौथे देवलोक में देव होते है। 

देव उनके पार्थिव देह को क्षीर समुद्र में पधराते है। 

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