श्री अजित शांति सुत्र
अजित शांति स्तवन Hindi Lyrics Click Here
अजित शांति स्तवननी रचना शंत्रुजय गिरिराज पर हुई थी।
नेमिनाथ भगवान के शासन में नंदिषेण मुनि शत्रुंजय यात्रा करने आते थे ,
उस समय अजितनाथ भगवान अौर शांतिनाथ भगवान की दोनो देरीया आमने सामने थी।
अजितनाथ भगवान के दर्शन करते समय , पिछे शांतिनाथ भगवान की देरी पड़ती थी ,
इसलिये दर्शन करते समय पिछे पीठ पड़ती थी। इसलिये नंदिषेण मुनि दोनो देरी के बीच में बैठ गये।
उन्होंने भाववाही अजित शांति स्तवन की रचना की ,
रचना होने के बाद दोनो देरी जो आमने सामने थी वो देरी बाजु - बाजु में आ गई।
अब अजितनाथ और शांतिनाथ भगवान की देरी मे बने हुए पगलाजी के दर्शन करते समय पिछे पीठ नहीं पड़ती है । यह अजित शांति स्तवन बहुत प्रभावक स्तवन है।
अजित शांति स्तोत्र की गाथा मे इस प्रकार से लिखा हुआ है कि
"जो पढई जो निसुणइ,
उभओ कालंपि अजिअ संति थयं,
न हु हुंती तस्स रोगा पूववुप्पन्ना वि नासंति"*
इस गाथा का अर्थ इस प्रकार से है - *श्री अजितशांति स्तवन को दो बार जो पढता है अथवा श्रवण करता है उसे रोग होते नही है और पहले के उत्पन्न हुए सभी रोग भी नाश हो जाते है ।
यह सुत्र बहुत ही प्रभावशाळी है और मंत्र गर्भित है .... इस सुत्र मे कुल ४० गाथा है ।
श्री अजितनाथ - शांतिनाथ भगवान की देरी शत्रुंजय तीर्थ में छ:गाउ की यात्रा करते समय चंदन तलावड़ी के पास है।
अजितनाथ भगवान और शांतिनाथ भगवान ने यहाँ गिरिराज पर चातुर्मास किया था।
इसलिये यह दोनो भगवान की देरी बनाई गई है।
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