श्री जीरावला पार्श्वनाथ
श्री जीरावला पार्श्वनाथ उलेखनुसार यहा जिरावाला पार्श्वनाथ भगवन का मंदिर वि. सं. ३२६ में कोड़ी नगर के सेठ श्री अमरासा ने बनाया था |कहा जाता है की अमरासा श्रावक को स्वप्न में श्री पार्श्वनाथ भगवान के अधिष्ठायक देव के दर्शन हुए |
अमरासाने स्वप्न का हाल वहा विराजित आचार्य श्री देव्सुरीजी को भी इसी तरह का स्वप्न आया था | पुनययोग से वाही पर पार्श्वप्रभु की प्रतिमा प्राप्त हुई |
मानयता है की आक्रमणकारीयो के भय से पार्श्वप्रभु की इस प्राचीन प्रतिमा को सुरक्षित किया होगा,
जो की अभी एक देहरी में विद्धमान है |
श्री जिरावाला पार्श्वनाथ भगवान की महिमा का जैन शास्त्रों में जगह-जगह पर वर्णन किया है |
यहां के चमत्कार भी प्रखयात है , जैसे एक बार ५० लुटेरे इकटे होकर मंदिर में घुसे |
मंदिर में उपलब्ध सामान व रुपये को जिनके जो हाथ लगा , गटडिया बांधकर बहार आने लगा |
दैविक शक्ति से उन्हें कुछ भी दिखाई न दिया जिससे जिधर भी जाते दीवारों से टकराकर खून से लथपथ हो गए व अन्दर ही पड़े रहे |ऐसी अनेको घटनाए घटी है वहा पे व अभी भी घटती है |
इनके कथानुसार यहा आने पर उनकी मनोकामनाए पूर्ण होती है |
चैत्री पूर्णिमा , कार्तिक पूर्णिमा व भाद्रव शुक्ला ६ को मेले लगते है |
श्री पार्श्व प्रभु की प्रतिमा अति ही प्राचीन रहने के कारण कलात्मक व भावात्मक है सहज ही भक्तजनों के हृदय को अपनी तरफ खीच लेती है |यह बावन जिनालाय मंदिर का द्रुशय अति ही आकर्षक लगता है |
चमत्कार : चौदहवी शताब्दी का समय था | पू.आ. श्री मेरुप्रभसूरीजी म.सा. विहार करते हुए तीर्थ की ओर आ रहे थे |
विकत जंगल में सूर्यदेव मार्ग भूल गए|
अनेक प्रयतनों के बाद भी मार्ग का पता नहीं चला| जीरावाला पार्श्वनाथ के दर्शन के लिए सूर्यदेव बेचैन हो गए| आखिर उन्होंने प्रभु के दर्शन न हो तब तक आहार पानी का त्याग कर अनशन कर लिया|
अभिगृह के प्रभाव से निर्जन जंगल में अचानक एक घुड़सवार उपस्तिथ हुआ और उसने आचार्य भगवंत को जीरापल्ली तक सुरक्षित पहुचा दिया |
उसके बाद वह घुडसवार अदृश्य हो गया|
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