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Parshwanath Bhagwan Jivan Charitra | पार्श्वनाथ भगवान का जीवन परिचय | Jain Stuti Stavan

Parshwanath Bhagwan Jivan Charitra | पार्श्वनाथ भगवान का जीवन परिचयParshwanath Bhagwan Jivan Charitra | पार्श्वनाथ भगवान का जीवन परिचय

पार्श्वनाथ भगवान (Parshwanath Bhagwanचैत्र विद चोथ की शुभ रात्री को माता वामा देवी निद्रा मे है वसंत ऋतु होने कारण वनराजी खीली है ऊधान मे से पुष्प की महक से शयनकक्ष महक रहा है केतकी जाइ मालती पर भंवर गुजन कर रहा है आम्रवृक्ष पर कोयल रानी टहूकार कर रही है विमल सरोवर में हंसो का समुह तैर रहा है हर ग्रह उच्च स्थान पर बिराजमान है तब माता वामा देवी ने ऊतम चौद सुपन को आकाश में से मुख मे जाते देखा और तब तेइसवे प्रभू पाश्वनाथ का च्यवन हुआ यह इद्र महाराज ने अवधि ज्ञान से देख माता के पास जाकर अर्थ किया नंदीश्वर द्रीप मेरूशीखर पे प्रभूजी को अभिषेक कर इद्रो और देव देविया प्रभू के अठ्ठाइ महोत्सव मनाने के लिए नंदीश्वर द्रीप पर आते है समुद्र के बीच जो पहाड होता है ऊसे द्रीप कहते है .

आठ बडे समुद्र है ऊसमे आठवा नंदीश्वर द्रीप है इस पर चारे दिशा मे बावन जिनालय है हर जिनालय मे एकसो चोविस प्रभू के प्रतिमाजी बिराजमान है बिचमे अंजन गिरि नाम के पूर्वा मुख जिनालय मे देव देविया प्रभू के अठ्ठाइ महोत्सव करते हैं मेरूशीखर पे प्रभूजी का जन्मोत्सव मनि कर देव देविया नंदीश्वर द्रीप पे अंजन गिरि नाम के जिनालय मे अठ्ठाइ महोत्सव करते हैं यह जिनालय बोतेर जोजन ऊचा है सो योजन लंबा है पचास योजन ऊसकी पहोडाइ है इसमे मणि रत्न के चार द्वार है पूर्व दिशा में देव नामक द्वार हे दक्षिण दिशा में असुर देव पश्चिम मे नाग और उतर मे सोवन्न नाम है चैत्य के बिच मे मणिरत्न की पीठीका हे जिसकी लंबाई चोडाइ सोलह योजन है इसकी ऊचाइ आठ योजन हैै 

इस पीठीका पर मध्य में सिहासन पर चऊ दिशे शाश्वत प्रभू के प्रतिमाजी बिराजमान है। तिर्थ कलिकुंड एक दिन पाश्वकुमार राणी प्रभावति के साथ ऊधान में आये वहा उसने नेम राजुल के सयंम का चित्र देखकर वैराग्य भाव हूआ और दिक्षा लि दिक्षा लेकर कांदबरी वन मे कुड नामक सरोवर के किनारे काऊसग ध्यान में रहे सरोवर में पानी पीने के लिए एक हाथी आया प्रभू को देख उसने सुढ मे जल भर प्रभू को अभिषेक किया और तालाब में से कमल का पुष्प चढाया यह पुण्य से हाथी को देव की गति प्राप्त हुई और यह पावन धरती कलिकुंड तिर्थ बना 

तिर्थ छत्रा नगरी पाश्वनाथ भगवान कांदबरी वन से विहार कर तापस के धर के पीछे वड के नीचे काऊसग ध्यान में खडे रहे तब कमठ का जीव जो मेधमाली था वो प्रभू को ऊपसर्ग करने के लिए बरसात बरसाने लगा इस वजह से पानी प्रभू के नासिका तक पहूचा यह देख कर काष्ठ में से निकाला था वो नाग का जीव। धण्रेन्द शिर पर छत्र बनाकर खडा रहा तिसरे दिन इन्द महाराज आया तब कमठ चला गया और यहां छत्रा नगरी नाम का तिर्थ बना 

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